युवाओं युवतियों में विवाह के प्रति बढ़ती अरुचि कहीं बन न जाए एक गंभीर सामाजिक समस्या!

कुछ अध्ययन में युवाओं युवतियों में विवाह के प्रति बढ़ती अरुचि पाया जा रहा है। यह सत्य है कि आज के युवा अपने करियर, स्वतंत्रता और सामाजिक जीवन को लेकर अधिक चिंतित हैं जिसके कारण उन्हें विवाह के प्रति अधिक आत्मसमर्पण की आवश्यकता नहीं महसूस होती। इसके बजाय, वे अपने उच्चतम शिक्षा, करियर और स्वतंत्रता के मूल्यों को महत्वपूर्ण मानते हैं।

हालांकि, इसमें अंधविश्वास नहीं होना चाहिए क्योंकि विवाह भी एक महत्वपूर्ण जीवन अनुभव है जो समृद्धि और समाज में स्थायिता को प्रदान कर सकता है। युवा पीढ़ी को चाहिए कि वे सावधानीपूर्वक इस मामले पर निर्णय लें और स्वयं के लक्ष्यों और सपनों के साथ एक सही साथी को चुनने में समर्थ हों।

समाज को भी यह समझना चाहिए कि युवा पीढ़ी के अधिक मुकरारता से उनकी अद्भुत क्षमताओं का समर्थन करना चाहिए और उन्हें उनके स्वप्नों की पूर्ति के लिए स्वतंत्रता और समर्थन प्रदान करना चाहिए।

युवाओं युवतियों में विवाह के प्रति बढ़ती अरुचि

युवाओं युवतियों में विवाह के प्रति बढ़ती अरुचि

विवाह, परिवार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन आजकल इस स्तंभ में कुछ बदलाव आ रहे हैं। पहले, संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवारें बढ़ रहे हैं, फिर महिलाएं और पुरुष ने अकेले ही बच्चों की ज़िम्मेदारी लेना शुरू की है, और अब बहुत से युवा शादी और परिवार बढ़ाने में नहीं रुचा रखते। उन्हें शादी अब सिर्फ सात जन्मों का बंधन नहीं, बल्कि उम्रकैद की सज़ा जैसा भी लगने लगा है।

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मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लिमेंटेशन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अविवाहित युवाओं का प्रतिशत बढ़ रहा है। साल 2011 में अविवाहित युवाओं की संख्या 17.2 फीसदी थी, जो 2019 में 23 फीसदी पर पहुँच गई। उसी रिपोर्ट के अनुसार, 2011 में 20.8 फीसदी पुरुष थे जो शादी नहीं करना चाहते थे, किंतु 2019 में यह प्रतिशत 26.1 तक पहुँच गया है।

इस तरह की प्रवृत्ति महिलाओं में भी देखी गई है, जहां 2011 में 13.5 फीसदी महिलाएं शादी नहीं करना चाहती थीं, वह 2019 में 19.9 फीसदी पर पहुँच गईं। एक चौथाई से ज़्यादा युवा लड़के-लड़कियाँ अब शादी नहीं करना चाहते हैं, और इसमें राष्ट्रीय युवा नीति 2014 का भी अहम योगदान है, जिसने 15 से 29 वर्ष की आयु वालों को युवा वर्ग में शामिल किया है।

सरकार की अन्य रिपोर्ट (2019) के अनुसार, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, और दिल्ली में शादी न करने वाले युवाओं की सबसे अधिक संख्या है। विपरीत में, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में ऐसे युवाओं की संख्या सबसे कम है, जिन्होंने शादी नहीं की है।

इस प्रकार, भारत जैसे देश में जहां शादी को महत्वपूर्ण माना जाता है, ऐसे में अविवाहित बेटे या बेटियों के बारे में चर्चा गहराई से होती है, जो सामाजिक दबाव और उत्साह दोनों के बीच में एक संघर्ष बना देती है।

आजकल, लड़कियों की शिक्षा में वृद्धि होने से वे शादी से विमुक्त हो रही हैं। इसका प्रमुख कारण है कि शादी के बाद लड़कियों की जीवनशैली पूरी तरह से परिवर्तित हो जाती है, जिससे उन्हें आत्मनिर्भरता की ऊँचाइयों तक पहुँचने में कठिनाई होती है। उनकी पहनावे, पसंदीदा खाने-पीने से लेकर उनके मानचित्र तक, सब कुछ ससुराल और पति की इच्छा के अनुसार होता है। कई स्थानों पर, सासू माएं बहू से सब कुछ अपने नियमों के अनुसार करने की आवश्यकता महसूस करती हैं, जो सच्चाई में चिंता का कारण है।

साथ ही, कई बार बहू की नौकरी के संदर्भ में भी ससुराल में असुविधाएं उत्पन्न होती हैं। ससुराल वाले चाहते हैं कि बहू नौकरी करें, लेकिन घर की जिम्मेदारियों में वह बाकी गृहणियों की तरह ही समर्पित रहे। इस संदर्भ में, अगर बहू नौकरी कर रही है और ससुराल आर्थिक रूप से समृद्ध है, तो उसे दबाव बनाने लगते हैं कि तुम्हें कमाने की क्या आवश्यकता है, हमारे घर में कोई चीज़ कमी नहीं है; नौकरी छोड़ दो।

इसके अलावा, शादी के बाद बच्चे पैदा करने की दबाववादी चर्चा भी बढ़ जाती है। बहू को यह अनुभव कराया जाता है कि ‘बिना माँ बने कोई भी स्त्री पूर्ण नहीं होती’। जब बच्चा होता है, तो बहू को हमेशा यह अहसास कराया जाता है कि अब वह माँ भी है, इसलिए उसे अपने सपनों को पहले बच्चे के बारे में सोचने की आवश्यकता है।

ऐसे ही, समय के साथ वह लड़की, जो खुले आसमान में उड़ना चाहती थी, बड़े सपने देखती थी, और अपनी ज़िंदगी को अपने तरीके से जीना चाहती थी, उसे एक साधारिता की दुनिया में बदल देती है और वह पति, सास, ससुर, और बच्चों के लिए जीने लगती है।

दूसरी ओर, अगर बहू बच्चा नहीं चाहती है या किसी कारणवश उसके बच्चे नहीं हो रहे हैं, तो उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है; उसे अपराधी की तरह देखा जाता है। कई बार तो पति भी अपनी पत्नी को सिर्फ इसलिए छोड़ देता है कि वह माँ नहीं बनना चाहती या माँ नहीं बन सकती।

इसके अलावा, दहेज़ उत्पीड़न की समस्या भी चरम पर है। हर साल न जाने कितनी लड़कियों को दहेज के चलते अपनी जान गंवानी पड़ती है। एक लड़की ससुराल में उत्पीड़न सहने को और भी मज़बूर हो जाती है क्योंकि हमारे यहाँ शादी के समय ही लड़की को यह एहसास करा दिया जाता है कि अब तुम्हारा सर्वस्व ससुराल ही है। हमारी फिल्मों में भी इस मानसिकता को सही ठहराया जाता है। उसमें भी लड़की के लिए साफ संदेश दिया गया है कि –

“फसलें जो काटी जाएँ उगती नहीं हैं, बेटियाँ जो ब्याही जाएँ मुड़ती नहीं हैं।”

ऐसी तमाम तरह की समस्याएँ हैं जिनका शादी के बाद अधिकांश लड़कियों को सामना करना पड़ता है। ऐसे में, वे लड़कियां जो अपने घर-परिवार या आस-पास हर रोज़ रिश्तों को घुनता हुआ देख रही हैं, उनके मन में शादी को लेकर नकारात्मक छवि बन जाती है, और वे उस स्थिति से गुजरना नहीं चाहतीं। अब वह पढ़ाई-लिखाई करके अपने करियर को ऊंचे मुकाम तक ले जाने और अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने में यकीन रखती हैं। वे अब घड़ी की सुई की तरह किसी के इशारों पर चौबीसों घंटे घूमना नहीं चाहतीं हैं।

वहीं, लड़कों के संदर्भ में देखा जाए तो, लड़कों का शादी से मोहभंग होने के कई कारणों में से सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी और कम आय वाली नौकरी का होना है। मैंने अक्सर लड़कों को यह कहते हुए सुना है कि ‘शादी तो कर लेंगे लेकिन खिलाएंगे क्या; पत्नी और बच्चों के खर्चे कैसे संभालेंगे?’ लगातार बढ़ रही बेरोज़गारी और मँहगाई के चलते कम आय वाले व्यक्ति का अपने परिवार का भरण-पोषण, बीमारी और बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पाना बेहद मुश्किल हो रहा है, जिसके चलते अधिकांश युवा अब किसी की ज़िम्मेदारी नहीं उठाना चाहते हैं।

हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी लड़के, जो शादी नहीं करना चाहते हैं, वे आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं। इसका एक अन्य कारण पत्नी और अन्य पारिवारिक सदस्यों के बीच तालमेल न बिठा पाना भी है। शादी के बाद, लड़का ही पत्नी और अपने अन्य परिवार वालों के बीच सेतु का कार्य करता है।

जिसके चलते यदि किसी बात पर पत्नी व उसके (लड़के) परिवार वालों के बीच मनमुटाव हो जाता है तो लड़का ही बीच में घुन की तरह पिसता है। अगर लड़का अपनी पत्नी की तरफ बोले तो घरवाले उसे ‘ज़ोरू का गुलाम’ कहते हैं, और परिवार की तरफ बोले तो पत्नी नाराज़ हो जाती है। कई बार यह स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि लड़के आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2016-2020 तक भारत में एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड केस में खराब शादी की वजह से 37 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने आत्महत्या की। साफ ज़ाहिर है कि कई बार अच्छी आर्थिक स्थिति होने के बावजूद, घरेलू कलह के चलते युवाओं को मानसिक शांति नहीं मिल पाती है। जिसे देखते हुए आज के युवा लड़के-लड़कियाँ अपनी जिंदगी का सफर अकेले ही तय करने का निर्णय ले रहे हैं।

एक और पहलू जिस पर बहुत कम गौर किया जाता है, वो यह है कि अपने प्रेमी या प्रेमिका से विवाह का न होना। जी हां, सुनने में थोड़ी हैरानी होगी लेकिन भारतीय समाज में, जहाँ आज भी अरेंज मैरिज को प्राथमिकता दी जाती है; प्रेम विवाह करने वालों को परिवार और समाज का बहुत कम समर्थन मिलता है या न के बराबर मिलता है।

कई बार तो प्रेम विवाह करने वाले लड़के या लड़कियों की उन्हीं के परिवार द्वारा हत्या तक कर दी जाती है। ऐसे में बहुत से लड़के-लड़कियाँ, जिन्हें यह लगता है कि घर और समाज द्वारा कभी भी उनके रिश्ते को स्वीकृति नहीं मिलेगी; किसी अनजान के साथ शादी करने की बजाय शादी न करने का फैसला कर लेते हैं।

दूसरी ओर ऐसे लड़के या लड़कियाँ, जो लंबे समय तक किसी रिश्ते में रहे हैं; शादी करने की योजना बनाते हैं लेकिन शादी से पहले ही उनके बीच अनबन हो जाती है और उनका रिश्ता टूट जाता है, ऐसी स्थिति में उनका रिश्तों से भरोसा उठ जाता है और उनके मन में विपरीत लिंग के प्रति एक धारणा बन जाती है कि सभी लड़के या सभी लड़कियाँ ऐसे ही होते हैं, जिसके चलते भविष्य में वो दोबारा अपनी जिंदगी में किसी को भी शामिल करने से डरने लगते हैं।

इसके अलावा, यह भी सच है कि आज के माहौल में पश्चिमी सभ्यता का असर बढ़ा है। जिसके चलते युवा शादी में बंधने की बजाए डेटिंग और लिव इन रिलेशनशिप को पसंद कर रहे हैं। वहीं कुछ युवाओं का मानना है कि आज के समय में अपनी भावनात्मक और शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शादी करना ज़रूरी नहीं है।

सार रूप में कहें तो आज के समय में युवा लड़के-लड़कियाँ अपने अधिकारों को लेकर अधिक मुखर हो गए हैं। लड़कियों के अंदर भी अब पुराने जमाने की महिलाओं की तरह सहनशीलता नहीं है। अब वे इस भावना से मुक्त हो चुकी हैं कि ‘भला है, बुरा है, जैसा भी है, मेरा पति मेरा देवता है’। आज वे पति के बराबर कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं; उसकी तरह कमा रही हैं तो उसके बराबर सम्मान की भी उम्मीद करती हैं।

जिसके चलते कई बार दोनों के अहं का टकराव हो जाता है और रिश्तों पर दरार पड़ने लग जाती है। वहीं, लड़के भी शादी के बाद अचानक से होने वाली रोक-टोक, पूछताछ और ज़िम्मेदारी के बोझ को झेल नहीं पाते हैं। इन सब कारणों के चलते समाज में विवाह विच्छेद के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। जो अन्य युवाओं, जो शादी के बंधन में नहीं बंधे हैं, के मन में शादी को लेकर संशय पैदा कर देते हैं।

यहाँ पर ये स्पष्ट करना भी ज़रूरी है कि सभी शादियाँ खराब ही नहीं होती हैं। एक गलत शादी अगर ज़िदगी को गर्त में ले जा सकती है तो एक सही जीवनसाथी का चुनाव हमारी ज़िंदगी को और ऊंचाईयों पर पहुंचा देता है। इसलिए ज़्यादा ज़रूरी यह सोचना नहीं है कि शादी करनी चाहिए या नहीं, बल्कि इस बात पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए कि आप जो भी रिश्ते बनाएं, उनमें आपको खुशी मिले; सुकून मिले। आप अपने बनाए रिश्तों में ईमानदार रहें। जब आप खुश रहेंगे तभी आपकी शादी भी सफल होगी। साथ ही, अपनी ज़िंदगी के सभी फैसलों में खुद भागीदार होना और उन फैसलों के परिणामों की ज़िम्मेदारी लेना भी आपका ही दायित्व है।

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